बच्चे आपकी बात जरूर मानेंगे, बस ये 3 चीज़े ध्यान में रखे By Arvindsinh Rana

आज में आपको मेरी सायकोलॉजिस्ट की प्रैक्टिस कुछ अनुभवों के बारे में बताऊंगा. कोरोना काल के दौरान और कोरोना के बाद बच्चो और पेरेंट्स के बिच का तनाव बढ़ता जा रहा है.  आपको भी ऐसा अनुभव हुआ हो या आपने भी ऐसे किस्से सुने होंगे की बच्चे माता पिता की बात नहीं सुनते, उनकी कही बातो का जल्दी बुरा मान जाते है, घर में छोटे मोटे झगड़े हो रहे है वगैरह.

बच्चे आपकी बात जरूर मानेंगे अगर ये Parenting टिप्स आजमाते है

मगर इस समस्या का कोई ठोस समाधान मिल नहीं पाता है, क्योकि ऐसी बाते हम दुसरो से Share भी नहीं कर पाते है.

तो यहाँ हम इस संवेदनशील विषय पर Child Psychology के अनुसार विस्तार से चर्चा करेंगे. में यह निवेदन करूँगा की आगे की बाते आप ध्यान से पढ़े.

इस पृष्ठभूमि के बाद, मुख्य बात पर आते हैं. फैमिली काउंसलिंग के लिए जो मामले आते हैं, उनमें ज्यादातर बच्चों और माता-पिता के बीच विवाद के मामले सामने आते हैं. वह बच्चा चाहे किसी भी उम्र का हो, मनमुटाव और गलतफहमी तो देखने को मिलती ही है. जनरेशन गैप के कारण कुछ मतभेद हो सकते हैं. लेकिन ज्यादातर बच्चों को अपने माता-पिता पुराने ख़यालात के लगते हैं. इसलिए बच्चे अपने जीवन में माता-पिता की दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं.

दूसरी तरफ माता-पिता को लगता है कि अगर हम उसे अच्छी (महंगी) Education दें, सुख सुविधाएं दें, उसकी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करें, भावनाओं की बौछार करें, तो फिर समस्या कहा रह जाती  है? रिश्तों में मधुरता नहीं आती, दूरियां बढ़ती जाती हैं और कई बार अनचाही घटनाएं भी घट जाती हैं.

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तो अब हम समस्या तो समझ चुके हैं, लेकिन समाधान क्या है?

प्रकृति के नियम के अनुसार किसी भी चीज के अंकुरित होने के लिए, उसके विकसित होने के लिए आवश्यक तत्वों की जरुरत होती है. बच्चों और माता-पिता के संबंध भी प्रकृति की ही देन है, इसलिए हमें इसे आवश्यक तत्व देने होंगे.

तो आइए चर्चा करते हैं उन तीन आवश्यक तत्वों की.

1) सम्मान – Respect

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एक जानवर की भी अपनी गरिमा होती है. अगर आपके घर में पालतू कुत्ता है तो आपको पता होगा कि जो व्यक्ति उसके साथ बुरा बर्ताव करता है वह उसके पास नहीं जाता है. यहीं से रिश्तों में दरार शुरू हो जाती है. हम अनजाने में ही सही पर अपने बच्चों (वे किसी भी उम्र के हों छोटे बच्चे, किशोर या युवा) के साथ थोड़ा उग्र व्यवहार कर रहे हैं.

दूसरों के साथ तुलना करना, उन्हें नीचा दिखाना, अपने तरीके से जबरदस्ती करना आदि और इसके पीछे हमारा तर्क यह है कि हम यह उनके भले के लिए कह रहे हैं. लेकिन “दूध चाहे कितना भी अच्छा हो, अगर आप उसे खौलता हुआ दूध देंगे तो मुंह जल जाएगा”. हां, जरूरत पड़ने पर अनुशासन लागू करें. लेकिन एक व्यक्ति के रूप में भी उनका सम्मान करें. जिस तरह आप अपने दोस्त, बॉस या अजनबी को सन्मान देते है, उसी तरह अपने बच्चे को भी Respect दें. साथ ही उनके विचारों का स्वागत करें.

2) समय – Quality Time

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हमने ज्यादातर लोगों को यह कहते सुना है कि हम अपने बच्चे के साथ समय-समय पर किसी होटल में खाना खाने, मूवी देखने या घूमने जाते हैं. ठीक है, लेकिन बच्चे के साथ रिश्ते को मजबूत बनाए रखने के लिए उसके साथ मुफ्त चर्चा और बातचीत करें (शिक्षा और करियर को छोड़कर). हर विषय पर बिना किसी हिचकिचाहट और संकोच के उनके विचार जानें, हमारे विचार साझा करें (थोपे नहीं).

याद रखें, जिस भी विषय पर आप उसके साथ चर्चा नहीं करेंगे, आपका बच्चा किसी और के साथ उस विषय पर चर्चा जरूर करेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है. साथ ही उनके पसंदीदा activities, उनके programs में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं. उनसे लेटेस्ट ट्रेंड, फैशन और सायकोलोजी जैसे विषयों पर जानकारी हासिल करें. यह समय का एक सही इन्वेस्टमेंट हुआ.

3) आज़ादी – Liberty

हम सभी जीवन में स्वतंत्रता चाहते हैं। काम में, रिश्तों में, राजनीतिक, आर्थिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमें प्रिय है। तो क्या हमारे बच्चों को भी उचित उम्र में अपने फैसले खुद लेने की आजादी नहीं देनी चाहिए? क्या हमें अपने जीवन में किसी की दखलअंदाजी पसंद थी या पसंद है? हां, जरूरत पड़ने पर एक मेंटर की भूमिका निभाई जा सकती है, मालिक की नहीं। किसने तय किया कि हमारे पास जो मान्यताएं और धारणाएं हैं, वे सच हैं? हमारा बच्चा हमारे प्यार का अंश है, हमारा द्वारा पैदा की गई वस्तु नहीं.

अक्सर कहा जाता है कि “इंसान की इच्छाएं अनंत हैं.” क्योंकि मन चाही वस्तु या व्यक्ति पाने के पीछे मोटिवेशन शक्ति मोह, वासना, आकर्षण या अहंकार हो सकता है, और इसीलिए एक के बाद एक इच्छा जागृत होती रहती है, मगर फिर भी संतुष्टि मिल नहीं पति है. लेकिन अगर किसी वस्तु या व्यक्ति को अपने जीवन में महत्वपूर्ण स्थान देने के पीछे की प्रेरक शक्ति प्रेम का भाव हो तो हमारे भीतर संतोष और शांति का भाव उत्पन्न होता है.

एक बात सोचने जैसी है की जिस चीज़ को पाने के बाद आत्मसंतुष्टि न हो तो उसमे घर्षण और अशांति बढ़ने लगती है. इसी तरह अपने सम्बन्धों या वस्तुओं का विश्लेषण करें, उसके पीछे प्रेरक शक्ति मोह, वासना या अहंकार तो नहीं है? और दूसरी तरफ जिन रिश्तों में आत्मसंतुष्टि का भाव होता है, वे जीवन में हों या न हों, मगर दिल से कभी नहीं छूट सकते.

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