“ये है पुरुषों का सबसे बड़ा दुश्मन” | Adjustment of the Male by Arvindsinh Rana

पुरुष और महिला की शारीरिक संरचना, आंतरिक प्रकृति, हार्मोन का स्तर, भावनात्मक विविधता और कई अन्य चीजें एक दूसरे से भिन्न हैं। उत्क्रांति (Evolution) के समय से ही पुरुष और महिला दोनों ने अलग-अलग परिस्थितियों का सामना किया है।

इन उत्क्रांति की घटनाओं ने पुरुष की एक विशेषता को जन्म दिया, जो कि लगातार कुछ खोजने, कुछ जीतने, कुछ पाने और कुछ हासिल करने की प्रवृत्ति है।

पुरुष जीवन भर कुछ न कुछ हासिल करने के लिए और निरंतर खुद को साबित करने के लिए प्रयास करता रहता हैं।’

हजारों साल पहले जब ज्यादातर पुरुष शिकार करने जाते थे, अगर कोई आदमी शिकार करने में सफल हो जाता था तो ही वह अपने परिवार के लिए भोजन लेकर लौटता था, जो आदमी खाली हाथ जाता था वह अपने परिवार को खाना नहीं खिला पाता था जिससे शायद उसका परिवार उसके साथ न रहे, जिसके कारण पुरुष खुद को कमजोर महसूस करता था।

समय के साथ परिवार के साथ-साथ समाज भी पुरुषों को इसी नजर से देखने लगा। एक सामाजिक मान्यता है कि जिन लोगों को कुछ मिलता है वे सफल होते हैं और जिन्हें कुछ नहीं मिलता वे असफल होते हैं, इस मान्यता ने पुरुषों के स्वभाव पर गहरी छाप छोड़ी है जो आज भी कायम है।

आज भी पुरुष को अपने परिवार और समाज पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए जीवन में कुछ न कुछ पाना पड़ता है। कोई भी पुरुष बतौर इंसान कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर उसने कुछ भी (सम्मान, शक्ति, धन, उपलब्धि) हासिल नहीं किया है तो उसे ज्यादा महत्व नहीं मिलता है।

लगातार कुछ न कुछ हासिल करने की प्रवृत्ति समय के साथ पुरुष के स्वभाव में शामिल हो गई है।

पुरुष के स्वभाव के अनुसार वह किसी चीज या उपलब्धि को पाने के लिए कड़ी मेहनत तो करता है, लेकिन उसे पाने के बाद कुछ ही समय में उसके मन में यह भावना पैदा हो जाती है कि यह तो मिल गया, अब क्या!

जो पुरुष लंबे समय तक उस वस्तु या उपलब्धि का आनंद नहीं उठा पाता, उसे ऐसा लगता है कि वह रुक गया है और वह उस भावना से प्रेरित होकर दूसरी वस्तु या सिद्धि पाने के लिए प्रेरित होता है।

अब जब कोई पुरुष लगातार कुछ न कुछ हासिल करके खुद को साबित कर रहा होता है तो उसमें अहंकार का जन्म हुए बिना नहीं रहता। इसीलिए हम देखते हैं कि समाज में जिन लोगों को जीवन में कोई स्थान मिला है, धन मिला है, नाम मिला है या ज्ञान मिला है, उनकी वाणी, व्यव्हार या आचरण में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अहंकार छलक ही जाता है। जब अहंकार की बात आती है तो बहुत कम लोग इससे बच सकते हैं।

तो अब हम समझ सकते हैं कि पुरुष में अहंकार उसकी प्रकृति की देन है। जो इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है और यह भी कहा जा सकता है कि कुछ पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है, दूसरों से आगे रहना पड़ता है, अपने आप को लगातार मोटिवेटेड रखने के लिए काफी अहंकार की आवश्यकता भी पड़ सकती है!

*महाभारत से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध तक, कहीं न कहीं किसी न किसी के अहंकार को ठेस पहुंचती है।*

अगर हम बात करे अपने मुख्य विषय “समायोजन” के बारे में तो, हमारा अहंकार किसी भी स्थिति के साथ तालमेल बिठाने में अवरोध पैदा करता है। मनुष्य के जीवन में अधिकांश समस्याएँ भी उसके अहंकार के कारण ही उत्पन्न होती हैं। अहंकार पुरुष को उस प्रकार का  व्यवहार नहीं करने देता जिसकी आवश्यकता होती है।

एक पुरुष के रूप में, उसके व्यक्तित्व विकास में अहंकार एक बड़ी रुकावट है, उसके माता-पिता के साथ उसके रिस्तो में, उसके वैवाहिक जीवन में, अपने बच्चों के साथ उसके रिस्तो में और  एक पुरुष के रूप में उसके करियर या व्यवसाय में आने वाली समस्याओं में ईगो बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। (इसका मतलब यह भी नहीं है कि सभी समस्या पुरुष के अहंकार के कारण होती है, इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं।)

ये तो हुई समस्या की बात लेकिन समाधान क्या है!


यहां बताई गई कुछ व्यावहारिक बातों को समझकर उन्हें जीवन में अपनाने से लाभ मिल सकता है।

  1. जिस प्रेमिका को पाने के लिए आकाश-पाताल एक कर दिया हो, पत्नी के रूप में मिल जाने पर उसका महत्त्व क्यों कम हो जाता है? यदि हां! तो क्यों?
    सोचना चाहिए और वह भी अपने साथी की गलतियों को देखने से पहले।
  2. यदि कोई पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक या मानसिक समस्या उत्पन्न हुई है तो, क्या इसके लिए हमारी कोई कमजोरी तो जिम्मेदार नहीं है ना!
  3. ज्यादातर पुरुष सिगरेट, शराब, ड्रग्स या किसी अन्य लत के पीछे तनाव, लत, संगति को जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन वास्तव में यह किसी कमजोरी को छुपाने का एक तरीका हो सकता है।
  4. अधिकांश पुरुषों का मानना ​​है कि उनकी जिम्मेदारी केवल आर्थिक जरूरतों को पूरा करना है, लेकिन यह वास्तव में एक गलत धारणा है क्योंकि घर के सभी मामलों में रुचि लेना ही पुरुष की गरिमा बनाए रखने का एकमात्र तरीका है।
  5. एक हजार रुपये नकद देना प्लास्टिक के फूल देने के समान है, जबकि पांच सौ रुपये की कोई चीज खरीदकर अपनी पत्नी या माता-पिता को देना असली सुगंधित फूल देने के समान है।
  6. पुरुष समझते हैं कि किसी की देखभाल करना, किसी की ज़रूरतों को पूरा करना ही प्यार है, लेकिन प्यार को सही मायने में व्यक्त करने के लिए शब्दों, भावनाओं, स्पर्श और अच्छे समय की जगह कोई नहीं ले सकता।
  7. समस्या से भागना, समस्या को दबाने या नजरअंदाज करने की बजाय शांति से समझना ही Adjustment कहलाता है।

 

Arvindsinh Rana

Counselling Psychologist

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